रविवार, 29 अप्रैल 2018

लेखन कला


लेखन की शुरुआत करें कुछ ऐसे..
लेखन खुद को व्यक्त करने की एक चिरप्रचलित विधा है। हमारा पुरातन इतिहास, पूर्वजों-पुरखों के कारनामें, कथा-गाथाएं, जीवनियाँ-संस्मरण, साहित्य, दर्शन सब लेखन की विधा के माध्यम से ही हम तक पहुँचे हैं। इंटरनेट के युग में लेखन में थोड़ा परिवर्तन जरुर आ चला है, लेकिन मूल बातें यथावत हैं। जहाँ एक ओर संचार के माध्यम के रुप में लेखन का अपना महत्व है, वहीं स्वयं को अभिव्यक्त करने व अपनी क्रिएटिविटी को प्रकट करने का यह एक प्रभावी माध्यम है।

अगर आप अभी तक लेखन की कला को जीवन का अंग नहीं बना पाएं हों व इसकी शुरुआत करना चाहते हों, तो यह पोस्ट आपके काम आ सकती है।
1.       न करें परफेक्ट समय का इंतजार प्रायः व्यक्ति यह सोचकर लिख नहीं पाता कि उसे परफेक्ट समय का इंतजार रहता है। यह परफेक्ट समय का इंतजार ओर कुछ नहीं प्रायः एक तरह का मानसिक प्रमाद होता है जो लेखन की जेहमत से बचता फिरता है, टालमटोल करता रहता है। और यह परफेक्ट समय कभी आता नहीं। पूछने पर बहाने मिलते हैं कि हमें समय ही नहीं मिलता या रुचि ही नहीं है। यदि समय है भी तो विचार ही मन में नहीं आते कि क्या लिखें। आते भी हैं तो बेतरतीव होते हैं।

2.       लेखन का फरफेक्ट समय – वास्तव में देखा जाए तो लेखन का परफेक्ट समय वो पल होते हैं जब व्यक्ति नए विचारों एवं भाव से भरा होता है। इस पल अगर आप ठान लें कि आपको स्वयं को लेखनी के माध्यम से व्यक्त करना है और दृढ़तापूर्वक कलम उठा लें तो शब्द खुद-व-खुद झरते जाएंगे। वाक्यों का संयोजन कितना ही लचर क्यों न हो, शब्द कितने ही अनुपयुक्त क्यों न हो आपका पहला पग उठ जाएगा।
और सबसे खास बात लेखन के संदर्भ में है कि इसमें आप हैं और आपकी कलम व कॉपी या लेप्टॉप। सो इसमें अधूरेपन व कमियों को लेकर संकोच की, डरने की जरुरत कैसी। अतः ऐसे पलों को नजरंदाज न करें। ये पल आपकी लेखन की विधा में हाथ आजमाने के लिए सबसे माकूल होते हैं।

3.       करें पहला रफ ड्राफ्ट तैयार इन भाव एवं विचारों को कागज पर उतारें। यह उस विषय विशेष या टॉपिक पर आपका पहला कच्चा ड्राफ्ट है। इस ड्राफ्ट का मूल भाव या केंद्रीय विचार क्या है, उसको एक हेडिंग के अंतर्गत स्पष्ट करने की कोशिश करें। यह आपके उभर रहे विषय का मूल है। इसके ईर्द-गिर्द अब लेखन के ताने-बाने को बुनना है। यह आपका पहला रफ ड्राफ्ट है।

अब इस ड्राफ्ट को छोड़ दें। विषय पर कुछ ओर विचार करें। यथासंभव पुस्तकों, विशेषज्ञों से चर्चा करें। ब्रेन स्टोर्मिंग करें। अब इन नए विचारों को रफ ड्राफ्ट में जोडें व मूल प्रति को नए सिरे से पढ़कर रिवाइज करें। इसमें यदि संभव हो तो हेंडिंग के बाद एक इंट्रो(आमुख) हो, बीच में बॉडी(मुख्य लेखन) के अंत में एक निष्कर्ष हो तो वेहतर होगा।
इस तरह अपनी रचना को रिवाईज करते रहें, जब तसल्ली हो जाए, तो इसे फाईनल कॉपी मानकर किन्हीं विशेषज्ञों की मदद ले सकते हैं व उचित स्थान व प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित कर सकते हैं।
4.       करें नित्य डायरी लेखन का अभ्यास लेखन में अभ्यास की जड़ता को तोड़ने के लिए नित्य डायरी लेखन एक महत्वपूर्ण विधा है। दिन के फुर्सत के पलों या रात्रि को सोते समय कुछ मिनट निकाल सकते हैं। दिन भर के अनुभवों को इस समय व्यक्त करने का प्रयास करें। यह दिन भर की कोई उपलब्धि, दैनिक जीवन के संघर्ष या सबक कुछ भी हो सकते हैं।
दूसरा, जीवन को संवेदित-आंदोलित करते बाहरी मुद्दे भी हो सकते हैं। रोज अगर एक पैरा भी ऐसा कुछ लिखने का क्रम बनता हो तो एक दिन आप पाएंगे की आपकी भाषा समृद्ध हो रही है, शब्द भंड़ार बढ़ रहा है, लेखन शैली उभर रही है। और विचारों का प्रवाह बैठते ही, विषय पर केंद्रित होते ही प्रवाहित होने लगा है।
5.       करें उचित प्लेटफॉर्म पर शेयर अगर आप लिखने की विधा में नियमित हो चले, आपके लेखन का प्रवाह बन पड़ा। तो आप उचित शोध के साथ पुष्ट अपने विचारों एवं भावों को उचित प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित या शेयर कर सकते हैं। ये इंस्टाग्राम में फोटो के साथ सारगर्भित पंक्तियों के रुप में हो सकता है। ब्लॉग अपने भावों एवं विचारों को अभिव्यक्त करने का लोकप्रिय प्लेटफॉर्म है व इन्हें फिर फेसबुक, ट्विटर, गूगल प्लस जैसे प्लेटफॉर्म पर शेयर कर सकते हैं।

सोशल मीडिया की खासियत यह है कि इसमें आपको पाठकों का फीड़बैक मिलता रहता है, जिसे आप उचित एनालिटिक्स पर जाँच-परख सकते हैं। आपको पता चलेगा कि आपकी कौन सी पोस्ट व विचारों को पाठक कितना पढ़ रहे हैं, कितना पसंद कर रहे हैं। यह फीड़बैक आपका उत्साहबर्धन करेगी। संभव हो तो किसी समाचार पत्र-पत्रिका में भी प्रकाशित कर सकते हैं।

6.       लेखन के साथ रखें ध्यान कुछ बातों का लेखन शुरुआत करने के संबन्ध में ध्यान रखें, कि शुरुआत ऐसे विषय से करें जिस पर आपका कुछ मायने में अधिकार हो। इससे आपकी भाषा में एक सधापन आएगा, विश्वास होगा, सहजता होगी। दूसरा अनुभव से भाषा का प्रवाह टूटेगा नहीं, शब्द सरल होंगे, वाक्य छोटे होंगे व लेखन प्रभावशाली होगा।

आपके लेखन में पाठकों के फीडबैक से मिलते उत्साहबर्धन का अपना महत्व होता है। लेकिन अंततः सृजन का आनन्द अपने आप में लेखन का प्रसाद होता है। अतः बिना अधिक आशा-अपेक्षा के साथ अपने सृजन साधना में लगे रहें, अपने सत्यानुसंधान को लोकहित में शेयर करते रहें। लोगों का इससे कितना हित होगा कह नहीं सकते लेकिन हर मौलिक सृजन के साथ आपका विकास अवश्य होगा, इतना सुनिश्चित है।
 
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शनिवार, 31 मार्च 2018

दिल करता है दुनियाँ को हिला दूँ

अभी तो महज बीज हूँ
 दिल करता है दुनियाँ को हिला दूँ,
लेकिन खुद हिल जाता हूँ,
अभी तो महज़ बीज हूँ,
देखो, कब पौध बन पाता हूँ।

देखे हैं ऐसे भी बृक्ष मैंने,
जो खिलने से पहले ही मुरझा गए,
क्या मेरी भी है यही नियति,
सोचकर घबराता हूँ।
लेकिन आशा के उजाले में,
नयी हिम्मत पाता हूँ,
बढ़ चलता हूँ मंजिल की ओर,
आगे कदम बढ़ाता हूँ।

अभी तो करने के कई शिखर पार,
देखो हिमवीर बन कहाँ पहुँच पाता हूँ।।

कुछ एकांतिक पल, बस अपने लिए


अपने संग संवाद के कुछ अनमोल पल
आज इंसान इतना व्यस्त है कि उसके पास हर चीज के लिए समय है, यदि नहीं है तो बस अपने लिए। जीवन इतना अस्त-व्यस्त हो चला कि सुनने को प्रायः मिलता है कि यहाँ मरने की भी फुर्सत नहीं है। व्यक्ति जिंदगी के गोरखधंधे में कुछ ऐसे उलझ गया है कि उसे दो पल चैन से बैठकर सोचने की फुर्सत नहीं है कि जिंदगी जा कहाँ रही है। जो हम कर रहे हैं, वह क्यों कर रहे हैं, हम किस दिशा में बह रहे हैं। आजसे पाँच साल, दस साल बाद यह दिशाहीन गति हमें कहाँ ले जाएगी, इसकी दुर्गति की सोच व सुध लेने का भी हमारे पास समय नहीं है।
कुल मिलाकर जीवन मुट्ठी की रेत की भांति फिसलता जा रहा है और हम मूकदर्शक बनकर जीवन का तमाशा देख रहे हैं। इस बहिर्मुखी दौड़ में खुद से अधिक हमें दूसरों का ध्यान रहता है, हम अपने सुधार की वजाए, दूसरों के सुधार में अधिक रुचि रखते हैं। अपनी हालत से बेखबर, दूसरों की खबर लेने में अधिक मश्गूल होते हैं। ऐसे में हम जीवन की सतह पर ही तैरने के लिए अभिशप्त होते हैं और अंदर का खालीस्थान यथावत बर्करार रहता है, जिसके समाधान के लिए गहराई में उतरने की बजाए हम फिर दूसरी बेहोशी में उलझ जाते हैं। ऐसे में जीने का, आगे बढ़ने का भ्रम होता है, लेकिन जीवन कोल्हू के बैल की भांति चलता रहता है, पहुँचता कहीं नहीं।
ऐसे में जीवन की शांति को खोजते खोजते मंदिर, मस्जिद, गिरजे, गुरुद्वारे, सकल तीर्थ स्थानों को हम छान मारते हैं, लेकिन अपनी सुध नहीं ले पाते। अंतर की गुहा में बैठी आत्मा एक कौने में उपेक्षित सिसकती रहती है, जिसको हम प्रायः अनसुना किए रहते हैं। जो प्रतिभा अंदर प्रकट होने के लिए आकुल थी, उसकी ओऱ ध्यान ही नहीं जाता। जो तड़प अंदर थी कुछ करने की, उसे मौका ही नहीं मिलता और वह पड़े-पड़े शांत हो जाती है। बाहर देखा देखी में भीड़ के साथ बहते-बहते जीवन का असली मकसद हाथ से यूँ ही फिसल जाता है। उधारी सपनों का बोझ कंधे पर ढोए जीवन बिना किसी सार्थक निष्कर्ष के बस यूं ही बीत जाता है। और अंत में हाथ लगता है तो सिर्फ एक गहरी विषाद, अवसाद और पश्चाताप भरी मनोदशा।
कितना अच्छा होता यदि समय रहते अपनी सुध ली होती। नित्य कुछ पल अपने लिए विचार के, आत्म चिंतन के, मनन के, आत्म समीक्षा के विताए होते। कुछ पल बैठकर अपने सच का सामना किया होता। जीवन की बहिर्मुखता के साथ अंतर्मुखता के कुछ अंतरंग पल अपने साथ विताए होते।
क्योंकि एकांत, शांत मनःस्थिति में ही अपना सही परिचय मिलता है। अपनी खोज, विश्लेषण व समीक्षा सम्भव हो पाती है। अपनी खूबी-खामी व शक्ति-दुर्बलता का परीक्षण संभव होता है और साथ ही अपने मौलिक स्वरुप की अभिव्यक्ति संभव होती है। यही एकांत के पल गहन-गंभीर सृजन के होते हैं। जीवन की अंतर्निहित शक्तियों के प्रस्फुटन का ताना वाना इन्हीं आंतरिक पलों में बुनना संभव होता है। अंतर्वाणी इन्हीं पलों में सबसे स्पष्ट एवं मुखर होती है। जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति का अर्जन इन्हीं पलों में होता है। अंतरात्मा अपने स्रोत्र के निकट होती है, अपनी शाश्वत शांति, नीरवता एवं वैभव के साथ विराट की ओऱ उन्मुख।
हर सफल इंसान की तरह महापुरुषों के तमाम दृष्टाँत इसकी बानगी पेश करते हैं। वे अंतर्मन से जुड़कर ही खुद को जान पाए, अपने निष्कर्षों के साथ कुछ सार्थक सृजन कर पाए। भगवान बुद्ध-महावीर से लेकर महर्षि अरविंद, महर्षि रमण तक इसी एकांत में तप कर कुंदन बने थे। स्वामी विवेकानन्द ने इसी एकांत में आंतरिक जीवन को समृद्ध-सशक्त बनाया था। गाँधी जी व कवींद्र टैगोर ने क्रमशः कौसानी व शिमला की नीरवता में कालजयी सृजन किया था। गहन तप व सृजन हेतु आचार्य श्रीरामशर्मा का हिमालय प्रवास जीवन का अभिन्न अंग रहा। महान विचारक थोरो की कालजयी रचना वाल्डेन झील के किनारे विताए ऐसे ही पलों का वरदान थी।
हालाँकि जीवन की भाग-दौड़ के बीच अपने लिए समय निकालना कठिन होता है लेकिन सुबह शाम या सोते समय इसके लिए कुछ मिनट निकाले जा सकते हैं। दिन में ऑफिस के शुरु, अंत व मध्य में कुछ पल एकांतिक आत्म समीक्षा के विताए जा सकते हैं। प्रातः या दिन के किसी भी समय, जो अनुकूल हो, कुछ पल मौन रहकर मन की ऊर्जा के बिखराव को रोककर अंतर्मुख भाव को सुदृढ़ किया जा सकता है।
सप्ताह अंत में कुछ घंटे या माह में एक दिन या साल में कुछ सप्ताह सघन एकांत के प्रकृति की गोद में विताए जा सकते हैं। इसके साथ ही घर के कौने में ऐसा ध्यान या पूजा कक्ष बनाया जा सकता है, जहाँ ऐसा मनोभाव जाग्रत होता हो। बाहरी परिवेश में यदि ऐसा एकांत संभव न हो, तो मन की ह्दयगुहा में ही एकांत को तलाशा जा सकता है। भीड़ के बीच भी एकांत का यह अहसास एक आदर्श स्थिति है, जिसका अभ्यास किया जा सकता है।

इस तरह सिर्फ अपने लिए निकाले गए कुछ गहन-गंभीर पल एकतरफा बहिमुर्खी जीवन की दिशाहीन गति को थामकर, अंतर में प्रवेश के सुअवसर बन सकते हैं और अपनी परिणति में जीवन की सार्थकता का अहसास दिलाने वाले सुयोग सावित हो सकते हैं।

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